असीम राज पाण्डेय, रतलाम। फोरलेन किनारे की जमीन पर ऐसा विवाद छिड़ा है, जैसे जमीन में सोना निकल आया हो और मोहल्ले के सारे रिश्तेदार एकसाथ जाग गए हों। मामला सिर्फ दो पार्टनरों का निजी लेनदेन का है। लेकिन अब बात पहुंच गई है प्रदेश के मुखिया के अनुज तक। यानी अब यह लड़ाई “पारिवारिक” से निकलकर “प्रभावशाली” हो चुकी है। दरअसल, किस्सा कुछ यूं है कि दो अलग-अलग वर्गों के बुजुर्गों ने बरसों पहले आपसी भरोसे से जमीन का सौदा किया था, बच्चों के सुनहरे भविष्य के नाम पर। मगर पीढ़ियां बदलीं, और भरोसे को “रजिस्ट्री के नीचे” दफना दिया गया। एक पार्टनर का बेटा जब अपने हिस्से की बात करने पहुंचा, तो दूसरे का बेटा ईमान छोड़कर अहंकार की छत पर चढ़ गया। अब सुनिए असली ट्विस्ट में नीयत हिली, तो नेताजी के अनुज से नजदीकी का लाभ उठाया गया। शिकायतें महाकाल की नगरी तक पहुंचीं और फिर प्रकट हुए ‘भ्राताश्री’ फूलछाप पार्टी के प्रदेश मुखिया के छोटे भाई। वो भी पूरे साजो-सामान के साथ लग्जरी गाड़ी, गनमैन और “निरीक्षण की मुद्रा” में। ये अंदर की बात है… कि अनुज की वाहन से उतरकर जमीन पर पैमाइश तो नहीं हुई, लेकिन असरदार फोटो जरूर खिंच गईं।
शहर में नाम का “दयालु थाना” और काम “छल-कपट”
शहर का एक आईएसओ थाने का नाम बड़ा प्यारा, “दयालु”, लेकिन काम में इतना कुटिल कि चालाकी भी शर्मा जाए। यहां के खाकीधारी सटोरियों और गुंडों को संरक्षण से सुर्खियां बटोरते हैं। एक महिला के घर में घुसा नग्न आरोपी भी यहां वीआईपी ट्रीटमेंट पाता है। महिला ने सबूत दिए, मोबाइल से फोटो खींचे। लेकिन थाने ने आरोपी को “प्यारे भैया” कहकर बचा लिया और महिला को बदनामी का डर दिखा दिया। ऊपर से जब देवर के सिर पर कुल्हाड़ी मारी गई, तो खाकी ने इसे “हल्की झड़प” बताकर धाराएं भी हल्की लगा दीं। अब सुनिए सबसे मजेदार किस्सा एक ‘बदनाम महिला’ ने व्यापारी को व्हाट्सएप से प्रेमजाल में फंसाया और जब वो प्लान फ्लॉप हो गया, तो खाकी के साथ मिलकर केस ठोक दिया। व्यापारियों को डराने के लिए चार पहिया गाड़ी में घूमती खाकी घर जाकर बेइज्जत कर आई वो अलग। ये अंदर की बात है… कि कप्तान साहब को इस “दयालु थाने की जादूगरी” की भनक लग गई है और जल्द ही संबंधितों को एक नया जादू देखने को मिलेगा।
यहां फूलछाप पार्टी पर हैं अफसर हावी
रतलाम के खेल मैदान पर राजनीति का ऐसा फुटबॉल मैच चल रहा है जिसमें गेंद जनता की उम्मीदें हैं और खिलाड़ी सिर्फ अफसर हैं। नेता बस रैफरी बनने की कोशिश कर रहे हैं वो भी बिना सीटी के। कहानी कुछ यूं है कि प्रदेश मुखिया ने उद्योगों की नींव रखने के लिए खेल मैदान का ‘बलिदान’ दे दिया। फीता काटा, फोटो खिंचाई, और चले गए। लेकिन जो वादा किया कि “मैदान सात दिन में पहले जैसा कर देंगे”, वो अब पांच हफ्तों की हंसी बन चुका है। फूलछाप पार्टी के नेता और खेल संगठन मैदान को बचाने की मिन्नतें कर रहे हैं, लेकिन अफसरशाही के कानों में जू नहीं रेंग रही। अब तो विपक्ष की हाथछाप पार्टी ने मैदान की हालत देखकर आंदोलन की धमकी दी है और अफसरों के साथ-साथ जनता भी अब फूलछाप पार्टी की हालत का स्कोर बोर्ड बना रही है। ये अंदर की बात है… कि शहर के एकमात्र नेहरू स्टेडियम अब सिर्फ मैदान नहीं, सत्ताधारी पार्टी की साख का “पिच” बन चुका है।