असीम राज पाण्डेय, रतलाम। शहर के चौक-चौराहों पर इन दिनों सबसे गर्मागरम चर्चा यही है कि बदनावर के पास टेक्सटाइल पार्क उतर आया है। मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर धार जिले के भैंसोला में पीएम मित्र टेक्सटाइल पार्क बन गया और इसकी गूंज अब सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनाई देने लगी है। कहा जा रहा है कि बदनावर के पूर्व मंत्री ने राजनीति की शतरंज पर ऐसी चाल चली कि 2,177 एकड़ जमीन पर औद्योगिक रोजगार का महल खड़ा कर दिया, जबकि रतलाम के नेताजी जनता को सिर्फ सब्जबाग ही दिखा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज शुरू हुए अरसा बीत चुका लेकिन इसकी हालत एक रेफरल सेंटर से ज्यादा कुछ नहीं। औद्योगिक निवेश की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है कागजों में योजनाएं और जमीन पर धूल उड़ाती उम्मीदें। शहर की गली-मोहल्लों में लोग याद कर रहे हैं कि जैसे नेताजी ने सुभाष नगर ब्रिज को पंचवर्षीय योजना के नाम पर बरसों टलवाया, वैसे ही अब आनंद कॉलोनी की पुलिया भी अटकी हुई है। ये अंदर की बात है… कि स्वास्थ्य सेवा बदहाल, युवाओं के सपनों में रोजगार और नेताजी विकास की सिर्फ घोषणाओं में व्यस्त और मस्त हैं।

एक आईएसओ थाना काम में नहीं कमाई में नंबर-1
जिला मुख्यालय का एक आईएसओ प्रमाणित थाना इन दिनों काम के बजाय कमाई में नंबर-1 बनकर चर्चाओं में है। हाल ही में यह थाना एक पीड़िता की इज्जत के बहाने आरोपियों को संरक्षण देने से सुर्खियां बंटोर चुका है। पिछले दिनों कप्तान की टीम ने तालाब किनारे सट्टे के अड्डे पर रेड भी दी, लेकिन जिम्मेदारों पर इसका असर वैसा ही हुआ जैसे गर्मी में पंखे के सामने रखा गीला तौलिया ठंडा होते-होते सूख गया। पिछले महीने आईएसओ प्रमाणित थाने में पवन ऊर्जा केबल चोरी की कहानी भी काफी रोचक है। प्रेस वार्ता से दो दिन पहले संदिग्धों को पकड़कर थाने में बैठाया गया। दो-दो दिन तक उन्हें नियम विपरीत रोके रखा गया और फिर बाकायदा “रसीद काटकर” रवाना कर दिया गया। सुना है, प्रति संदिग्ध 35 हजार रुपये का हिसाब हुआ और बड़ी मात्रा में जब्त तांबा का कुछ हिस्सा फोटो सेशन के लिए रखा और बाकी गायब कर बाजार में बेच दिया गया। ये अंदर की बात है… कि कप्तान ने सट्टे पर दबिश दिलवाकर चेतावनी भी दी थी, लेकिन लगता है कि थाने के जिम्मेदार कमाई की “मदहोशी” में नसीहत को भूल बैठे हैं।


हाथ छाप के नए-नवेले नेताजी का नया कारनामा
हाथछाप पार्टी की कमान हाल ही में एक नए-नवेले नेताजी को सौंपी गई है। नेताजी को राजनीति में उतना शौक नहीं जितना अखबारों और सोशल मीडिया पर छाने का। पिछले दिनों नगर निगम में प्रदर्शन के बाद जो अंदरूनी खटपट शुरू हुई, वह अब चाय की दुकानों पर मजे से परोसी जा रही है। कहानी कुछ यूं है कुर्सी मिलते ही नेताजी को ऐसे “शागिर्द” घेर बैठे जो मलाईदार राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। निगम में पार्टी ने दावा तो बड़ा किया पर मीडिया में सुर्खियां नेताजी के नाम से नदारद रहीं। यह देख नेताजी और उनके “शागिर्द” तमतमा गए। गुस्से में नेताजी ने पुराने जमीनी कार्यकर्ताओं और एक पूर्व कुर्सीधारी को व्हाट्स एप ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखा दिया। नेताजी का यह कारनामा पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया। नतीजा यह कि अब जमीनी कार्यकर्ता नेताजी से धीरे-धीरे दूरी बना रहे हैं। ये अंदर की बात है… कि नेताजी शायद भूल गए कि जमीन खरीदने-बेचने और राजनीति करने में फर्क होता है। कारोबार में भाव चलता है और राजनीति में व्यवहार। लेकिन शागिर्दों ने ऐसा चश्मा पहनाया है कि उन्हें दोनों एक ही दिखाई दे रहा है।