रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज। भ्रष्टाचार के 15 वर्ष पुराने एक चर्चित मामले में विशेष न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988) रतलाम ने अपात्र कृषकों को केसीसी (Kisan Credit Card) लोन देने के दोषी पाए गए तत्कालीन बैंक प्रबंधक, लोन प्रबंधक सहित 14 किसानों को कारावास एवं जुर्माने से दंडित किया है।
यह फैसला विशेष न्यायाधीश संजीव कटारे द्वारा विशेष प्रकरण में सुनाया गया।
प्रकरण में शासन की ओर से पैरवी विशेष लोक अभियोजक (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) कृष्णकांत चौहान द्वारा की गई। चौहान ने बताया कि कोर्ट ने बैंक ऑफ इंडिया ( बजाज खाना शाखा रतलाम) के तत्कालीन शाखा प्रबंधक मुख्य आरोपी ब्रदीलाल पाटीदार तथा सह-आरोपी तत्कालीन लोन प्रबंधक (बैंक ऑफ इंडिया, बजाजखाना शाखा रतलाम ) दिलीप मेहता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) के तहत 2-2 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 1-1 हजार रुपये जुर्माना, तथा धारा 420, 120बी भादंवि के तहत 2-2 वर्ष का कारावास एवं 1-1 हजार रुपये जुर्माना से दंडित किया। इसके अलावा 14 अपात्र कृषकों को जिन्होंने फर्जी दस्तावेज़ों के आधार पर केसीसी लोन प्राप्त किया था,
धारा 420 भादंवि के तहत 2 वर्ष का कारावास व 1 हजार रुपये जुर्माना तथा
धारा 467, 468, 471 भादंवि के तहत 3 वर्ष का कारावास एवं 1 हजार रुपये जुर्माना से दंडित किया गया। शेष आरोपियों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त किया गया।
इन 14 किसानों को भी कोर्ट ने माना दोषी
कोर्ट ने निम्न 14 अपात्र कृषकों को भी दोषी मानते हुए सजा सुनाई है। इनमें मनोज पिता रामनारायण सोलंकी निवासी ग्राम पलसोडा, हरीश पिता मुकेश पाटीदार निवासी ग्राम कुआंझागर, अनोखीलाल पिता चंपालाल पाटीदार निवासी ग्राम धामनोद, दशरथ पिता लक्ष्मीनारायण पाटीदार निवासी ग्राम धामनोद, प्रेमबाई पति उमरावसिंह निवासी ग्राम घटवास, कचरूलाल पिता हीरालाल धाकड़ निवासी ग्राम इसरथुनी, किशनलाल पिता गिरधारीलाल निवासी ग्राम झर, मोहनलाल पिता नरसिंह निवासी ग्राम लकटिया, वीरेन्द्र पिता मनोहरलाल निवासी ग्राम सीखेड़ी, शांतिलाल पिता बगदीराम धाकड़ निवासी ग्राम इसरथुनी, ओंकारलाल पिता भेरूलाल कुम्हार निवासी ग्राम खोखरा, महेश पिता बापूलाल पाटीदार निवासी ग्राम धामनोद, मदनलाल पिता भरतलाल पाटीदार निवासी ग्राम धामनोद और दशरथ पिता गणपतलाल कुम्हार निवासी ग्राम खोखरा को दोषी पाया है। इन सभी को धारा 420 भादंवि के तहत 2 वर्ष का कारावास व ₹1,000 जुर्माना, तथा धारा 467, 468, 471 भादंवि के तहत 3 वर्ष का कारावास व ₹1,000 जुर्माना से दंडित किया है।
जांच में सामने आया बड़ा घोटाला
मामला वर्ष 2010 का है, जब बैंक ऑफ इंडिया की बजाजखाना शाखा रतलाम में अपात्र कृषकों को फर्जी भू-अभिलेखों के आधार पर केसीसी लोन स्वीकृत किए गए थे। बैंक के तत्कालीन प्रबंधक ब्रदीलाल पाटीदार और लोन प्रबंधक दिलीप मेहता पर आरोप था कि उन्होंने दलाल राधेश्याम पाटीदार एवं उसके साथियों के माध्यम से बिना सत्यापन के फर्जी दस्तावेज़ों पर लोन स्वीकृत किए। शिकायत पर बैंक के आंचलिक प्रबंधक के आदेश से सुनील गुप्ता, मानव संसाधन एवं विजिलेंस लायजन अधिकारी ने जांच की। जांच में यह पाया गया कि कई किसानों ने भूमिहीन होते हुए भी बड़ी कृषि भूमि दर्शाकर लाखों रुपये के ऋण प्राप्त किए थे।
फर्जी दस्तावेज़ों और मिलीभगत का खुलासा
जांच में सामने आया कि कई किसानों ने कूटरचित खसरा बी-1 और सीएलआर रिकॉर्ड प्रस्तुत कर लोन लिया। कुछ मामलों में नोटरी एडवोकेट्स द्वारा शपथपत्र बिना हस्ताक्षर या अंगूठा निशान के तैयार किए गए। बैंक के अधिकृत अधिवक्ता नरेन्द्रसिंह राठौर और नरेन्द्रसिंह चोखड़ा द्वारा दी गई टाइटल रिपोर्ट्स गलत पाई गईं। बैंक अधिकारी एवं दलालों की मिलीभगत से कुल 110 फर्जी केसीसी फाइलें तैयार की गईं। इस गड़बड़ी से बैंक और शासन को भारी वित्तीय हानि पहुंची, जबकि आरोपियों ने अवैध लाभ कमाया।


