
– सट्टा केस में पकड़े युवक पर पुलिस ने थोपी थी जहरीली शराब, कोर्ट ने कहा— ‘मामला ही संदेहास्पद’
रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज। रतलाम माणकचौक पुलिस की एक चौंकाने वाली कार्रवाई पर कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। करीब 9 साल पहले, पब्लिक गेम्बलिंग एक्ट में गिरफ्तार दीपेश मराठा पर पुलिस ने जहरीली शराब रखने का झूठा आरोप जड़ा था। रतलाम की न्यायिक मजिस्ट्रेट आकांक्षा गुप्ता ने सभी तथ्यों और गवाहों की विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया कि पुलिस की कहानी पूरी तरह संदेह से घिरी हुई है। नतीजतन, दीपेश को जहरीली शराब के आरोप से बरी कर दिया गया।
दीपेश के वरिष्ठ एडवोकेट अमित कुमार पांचाल ने कोर्ट को बताया कि 30 अप्रैल 2016 की रात करीब 11:30 बजे माणकचौक थाना पुलिस ने हरदेवलाला की पीपली इलाके से दीपेश सहित कुछ अन्य लोगों को सट्टा लिखते हुए गिरफ्तार किया था। अगले ही दिन, यानी 1 मई 2016 को पुलिस ने दीपेश को फिर से गिरफ्तार दिखाया और झूठी कानूनी कार्रवाई में इस बार बाजना बस स्टैंड चौराहे पर 10 लीटर जहरीली शराब के साथ गिरफ्तारी दिखाई थी। वरिष्ठ एडवोकेट पांचाल ने कोर्ट को बताया कि दीपेश पहले से ही 30 अप्रैल को गिरफ्तार था और उसी गिरफ्तारी को दो बार दिखाकर पुलिस ने उस पर एक मनगढ़ंत मामला थोप दिया। कोर्ट में अभियोजन ने चार पुलिसकर्मियों को गवाह के तौर पर पेश किया। जिनमें तत्कालीन सहायक उपनिरीक्षक विनोद कटारा, उपनिरीक्षक मोतीराम चौधरी, आरक्षक नाहरसिंह और राहुल देव मौजूद हुए। कोर्ट में पुलिस और गवाह झूठी कार्रवाई के सवालों पर जवाब तक नहीं दे पाए। पुलिस और झूठे तैयार किए गए गवाह की चुप्पी को कोर्ट ने प्रकरण को संदेह में डाल दिया।
कानूनी दस्तावेजों में भी विरोधाभास
कोर्ट में वरिष्ठ एडवोकेट पांचाल ने यह भी उजागर किया कि सट्टा केस में दीपेश की उम्र 33 वर्ष और पेशा मजदूरी बताया गया था। वहीं, शराब केस में उसकी उम्र 37 वर्ष और पेशा चाय की दुकान चलाना बताया था। इतना ही नहीं, पुलिस ने बयान दिया कि दीपेश से शराब रखने का लायसेंस मांगा गया था। जबकि जहरीली शराब के लिए किसी भी तरह का लाइसेंस सरकार द्वारा जारी ही नहीं किया जाता।