– एग्रीमेंट की धज्जियां उड़ाकर हो रही है शादी-पार्टी की बुकिंग, दो विभाग के जिम्मेदार सवालों से भागे
रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज। रतलाम नगर निगम की निकम्मी कार्यप्रणाली और मिलीभगत का शर्मनाक उदाहरण सामने आया है। दो करोड़ रुपये की लागत से बने कुशाभाऊ ठाकरे स्वीमिंग पूल को महज ₹12,666 मासिक किराए पर ठेके पर देने के बाद, अब निगम आंखें मूंदे उस ठेकेदार की मनमानी का तमाशा देख रहा है। ठेकेदार ने न सिर्फ मनमाना शुल्क वसूला, बल्कि करार की शर्तों के विरुद्ध स्विमिंग पूल में विवाह समारोह, बर्थडे पार्टी और किटी पार्टी जैसे आयोजन शुरू कर दिए। शहर में खुलेआम बैनर-होर्डिंग्स लगाकर यह व्यापार चलाया जा रहा है और निगम के जिम्मेदार कार्रवाई के बजाए उल्टा सवालों से बच रहे हैं।

ट्रिपल इंजन की सरकार चुनने वाली रतलाम की जनता आज खुद को ठगा महसूस कर रही है। एक तरफ छोटे व्यापारियों से जबरन वसूली और टैक्स बढ़ा कर नगर निगम अपनी जेबें भर रहा है, दूसरी तरफ करोड़ों की सार्वजनिक संपत्तियों को सस्ते में सौंपकर अपनों की जेबें भी भरवा रहा है।यह वही पूल है जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनता को सौंपा था। अब यह दिल्ली के ठेकेदार के लिए मुनाफे का निजी क्लब बन चुका है। जहां एक तरफ आमजन पर टैक्स की मार पड़ रही है, वहीं नगर निगम ने सार्वजनिक संपत्ति को औने-पौने दाम में सौंप कर सरकारी धन और जनता के हितों की बलि चढ़ा दी है।
करार की खुली धज्जियां, निगम बना मूकदर्शक
कुशाभाऊ ठाकरे तरणताल को फरवरी 2025 में ठेके पर देने की तैयारी हुई और मार्च 2025 में महज़ दिखावे की निविदा प्रक्रिया के बाद रामकृष्ण इंटरप्राइजेस (नॉर्थ वेस्ट दिल्ली) को ठेका सौंप दिया गया। दो टेंडरों में से एक को तकनीकी बहाने से बाहर किया गया और दूसरी एजेंसी को सिर्फ 1.52 लाख रुपये वार्षिक में सौंप दिया गया।
सवालों से बचने के लिए जिम्मेदारों के जवाब
पूरे मामले पर जब जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब मांगा गया तो रतलाम निगम के जलप्रदाय विभाग के प्रभारी कार्यपालन अधिकारी राहुल जाखड़ ने गेंद स्वास्थ्य विभाग के पाले में डाल दी। वहीं स्वास्थ्य विभाग के एपी सिंह ने कह दिया कि उन्हें अधिकार ही नहीं दिए गए। हैरानी तो तब हुई जब प्रभारी आयुक्त करुणेश दंड़ोतिया ने सवालों से बचने के लिए फोन ही स्विच ऑफ कर लिया।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बयां करती संरक्षण की कहानी
जनप्रतिनिधि भी पूरे मामले पर चुप हैं। यह चुप्पी साफ इशारा करती है कि मिलीभगत सिर्फ अफसरशाही तक सीमित नहीं, राजनीतिक संरक्षण भी इसमें गहराई से शामिल है। सूत्र बताते हैं कि ठेकेदार को मिला संरक्षण केवल अधिकारी स्तर पर नहीं, बल्कि नगर परिषद के प्रभावशाली सदस्यों की मौन सहमति से संभव हुआ है।


