
असीम राज पाण्डेय, रतलाम। रतलाम की रेल पुलिस फिर एक बार सुर्खियों में है। लेकिन कारण वही पुराना, श्रेय की छीना-झपटी। इस बार मामला एक चार माह की मासूम के अपहरण से जुड़ा है। जिला अस्पताल से शातिर महिला बच्चा चुरा कर स्टेशन तक आ पहुंची। लेकिन मासूम की किस्मत जागी, जब एक सजग ऑटो चालक को शक हुआ और वह महिला को सीधे जीआरपी थाने ले गया। पुलिस ने महिला को हिरासत में लिया और मामला उजागर हुआ। मीडिया ने जब पड़ताल की तो सामने आया कि बच्ची की वापसी का श्रेय दरअसल ऑटो चालक को जाता है, न कि रेल खाकी को। लेकिन जीआरपी ने आनन-फानन में प्रेस को सूचना दी और अपने सिर पर ‘बहादुरी का सेहरा’बांधने की पूरी कोशिश की। यह कोई पहली बार नहीं है। पहले भी ट्रेन में गुम बैग लौटाने वाले युवकों को जीआरपी ने शाबाशी देने की जगह डांट पिलाकर मामला रफा-दफा कर दिया था। ये अंदर की बात है…कि रेल खाकी शिकायतें फाइलों में दफन कर देती है, लेकिन श्रेय लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ती। शुक्र है रतलाम की सजग मीडिया का, जो असल हीरो को सामने लाने में पीछे नहीं हटी।
झीलों की नगरी में नगर सरकार मस्त-जनता त्रस्त
रतलाम की सड़कों पर उभरे गड्ढे हों या नलों से पानी नहीं मिलने की समस्या। जनता कराह रही है, लेकिन नगर सरकार सैर-सपाटे में व्यस्त है। जहां एक ओर पटरी पार कस्तूरबा नगर में ठेकेदार की लापरवाही से जनता परेशान होकर सीधे मंत्रीजी को फोन घनघनाने लगी, वहीं दूसरी ओर नगर सरकार माननीय पहले तो विदेश टूर करके आए। और अब फूलछाप वार्ड माननीयों को झीलों की नगरी में सैर-सपाटा कराने के साथ वीडियो और गाने बनाने में मशगूल रहे। जनता की परेशानी देख मंत्रीजी ने चुस्ती दिखाई, जिला मुखिया को दौड़ाया। अधिकारी दौड़े और आनन-फानन में मौके की नब्ज टटोली गई। लेकिन असली सवाल है, नगर सरकार की जिम्मेदारी जिन नव सीखिए नेताओं के कंधों पर है, क्या वे केवल शो-ऑफ के लिए चुने गए हैं? ये अंदर की बात है...कि ना जनता खुश है, ना संगठन। और नगर सरकार के इस रवैये से असंतोष की आग सुलग रही है।
जुआ पकड़ने पर इनाम नहीं मिली सजा
जावरा में महू-नीमच फोरलेन के पास एक होटल से जुआ खेलते रसूखदारों को पकड़ना पुलिस के दो कर्मचारियों को भारी पड़ गया। होटल किसी बड़े फूलछाप नेता के खास का बताया जाता है। दबिश मारकर डेढ़ लाख रुपये और ताश की गड्डियां जब्त हुईं, कार्रवाई की वीडियोग्राफी भी हुई। लेकिन फिर खेल पलट गया। हैरानी की बात है कि मामले में होटल संचालक को नेता नगरी में वजूद के चलते शुरू से उसे क्लीन चिट दी गई और राजनीति की घुसपैठ के बाद दो पुलिसकर्मियों को ‘लाइन अटैच’कर दिया गया। वजह रसूखदार जुआरियों की सिफारिशें, और नेताजी की ‘भावनात्मक बहाव’में बह जाना। ये अंदर की बात है… कि महकमें में चर्चा ने जोर पकड़ रखा है कि बेहतर काम करने वालों को इनाम नहीं, उल्टा सजा मिलती है। सवाल ये कि क्या अब कानून के हाथ सिर्फ आम जनता के लिए ही लहराएंगे?