असीम राज पाण्डेय, रतलाम। हाल ही में रतलाम के बाहरी क्षेत्र में एक जमीन विवाद को लेकर फूलछाप पार्टी की राजनीति में जद्दोजहद करते युवा नेता ने मध्यस्ता कर बड़ा खेल कराया। इस खेल में खाकी के अलावा गुंडे को भी शामिल किया गया। जनता की सुरक्षा और सुनवाई के लिए 24*7 समय पर तत्पर रहने वाले जिले की कमान संभाल रहे कप्तान को जब चौराहों पर गरमा रही चर्चा की भनक लगी तो उन्होंने अपने ही डिपार्टमेंट के एक खाकीधारी को ताकिद किया। जमीन विवाद में शामिल खाकीधारी के जुबान से मामले की कहानी सुन कप्तान के गुस्से का गुबार फूट पड़ा। दरअसल कहानी कुछ ऐसी है कि फोरलेन की एक जमीन को दो पार्टनरों ने मिलकर खरीदी थी। खटपट के बाद एक पार्टनर जमीन का कब्जा नहीं छोड़ रहा था। दूसरे पार्टनर ने अपनी रसूखदारी का उपयोग करते हुए सत्ताधारी पार्टी की राजनीति में जद्दोजहद करने वाले युवा नेता को शामिल किया। युवा नेता ने खाकीधारी से सांठगांठ कर 40 लाख रुपए में जमीन खाली कराने का टेंडर हथियाकर पिक्चर में हिस्ट्रीशीटर गुंडे को शामिल किया। गुंडे ने कब्जाधारी पार्टनर को जमकर तपाया और धमकाया। ये अंदर की बात है… कि मामला सामने आने के बाद कप्तान ने गुंडे की करतूत पर प्रकरण दर्ज करवाकर उन्हीं खाकीधारी के हाथों जिलाबदर की फाइल भी तैयार करवाई जो पहले सरंक्षण दे रहे थे। सौदेबाजी करने वाले खाकीधारी और राजनीति में जद्दोजहद करने वाले युवा नेता अब मलाल बतौर हाथ मसल रहे हैं।
बड़े बाबू का एक ही उसूल-काम वहीं जहां मलाई
रतलाम के बड़े बाबू का एक ही उसूल है, काम वहीं जहां मलाई मिले, बाकी सब ‘नो कमेंट’। स्कूलों में खीर की जगह बच्चों को सूखे परमल थमा दिए गए, छात्रावासों में खाने में कीड़े वाली दाल हो या कीचड़दार सड़क से मासूमों को स्कूल पहुंचने के लिए मजबूर। लेकिन साहब के लिए ये “फाइल योग्य” विषय नहीं हैं। जनसुनवाई की फेहरिस्त पढ़कर लगता है कि साहब को जनता की पीड़ा से उतना ही लेना-देना है, जितना छुट्टी के दिन कुर्सी से उठने का। मीडिया सवाल पूछे तो साहब मौन व्रत धारण कर लेते हैं, जैसे कोई तपस्वी हों। मगर मलाईदार फाइलें हो तो बंगले पर चाय के साथ दस्तखत का नज़ारा कुछ अलग ही रहता। ये अंदर की बात है… कि छह महीने में साहब ने ऐसा रिकॉर्ड बनाया कि रतलाम “घुसखोरी का हॉटस्पॉट” बन गया। बच्चों के मुंह सूखे परमल से भरे हों या स्कूल के हालात मलबे जैसे, बड़े बाबू को इससे फर्क नहीं पड़ता। मलाई में डूबे बाबू को जनता तो दूर मासूमों की समस्या सुनाई नहीं देती क्योंकि इनमें कुर्सी का अहंकार ऐसा कि इन्हें चेंबर से बाहर आकर शिकायत सुनने में परेशानी होती है।
फूलछाप पार्टी के नेताओं के नहीं हो रहे तेवर कम
रतलाम की राजनीति में अब सड़कें भी रणभूमि बन गई हैं। भाजपा नेत्री के पतिदेव की ‘पारिवारिक पहलवानी’ अभी थमी नहीं थी कि पार्टी के दो उभरते नेता खुद ‘वार्ड युद्ध’ में उलझ गए। सड़क बन नहीं रही क्योंकि पार्टी मुखिया के अपने आपको खासमखास मानने वाले नेता ने अतिक्रमण कर रखा है। अब दोनों युवा नेता जो पहले सोशल मीडिया पर मुस्कराते थे। इन दिनों दोनों सड़क पर एक-दूसरे की कॉलर नापते नजर आ गए। ये अंदर की बात है… कि दोनों युवा नेता पार्टी में ‘नंबर बढ़ाने’के चक्कर में एक-दूसरे को ‘कमीशन काट’समझ बैठे हैं। मुखिया ने डांट पिलाई, लेकिन दुश्मनी का बीज तो सड़क किनारे बोया जा चुका है। जनता अब गड्ढों में टायर नहीं, भरोसे को कोस रही है। फूलछाप पार्टी के अनुशासन की चादर अब इतनी तार-तार हो गई है कि धूप नहीं, फटकार छन रही है। “गड्ढे सड़क पर नहीं, पार्टी में हैं”, यह जनता अब चौराहों पर चाय की चुस्की के साथ खुलकर कह रही है।