असीमराज पांडेय, केके शर्मा, जयदीप गुर्जर
रतलाम। जिला पंचायत की माननीया की पार्टी में भले पूछ परख नहीं है, लेकिन इनके पति ने श्रीमती जी के साथ हर शासकीय बैठक में मौजूद रहकर फोटो खिंचाने का इंतजाम सांसद प्रतिनिधि बन कर लिया है। जो लगातार जिला बंदोबसिया की बैठकों में साफ दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में कॉलोनियों से जुड़े से बड़े साहब ने कलेक्टोरेट में बैठक ली। पद के अनुसार माननीया को तो जाना था लेकिन इनके साथ माननीया के साहब भी बैठक में सबसे आगे राजधानी से पहुंचे बड़े साहब की कुर्सी के पास बैठ गए। जिला पंचायत की माननीया प्रतिदिन कार्यालय में कम ही नजर आती है, इनके साहब बड़े रौब से माननीया के पद की नेम प्लेट व सायरन बजाते गाड़ी में जरुर आते हैं। माननीय की अनुपस्थिति में यह साहब कार्यालय में रौब से बैठकर घंटी बजाकर कर्मचारियों को अपने पास बुलाकर निर्देश देते हैं। इन साहब के कारण ही जिला पंचायत सदस्य नाराज होकर सड़क पर बैठे थे। सवाल यह है कि एक तरफ सरकार महिलाओं को आगे कर रही है, ठीक इसके विपरित जिला मुख्यालय से लेकर ग्राम पंचायतों के हर काम माननीया के साहब कर रहे हैं।
भाजपा संगठन के दो अलग-अलग चेहरे
भाजपा संगठन की जिले में दोहरी नीति इन दिनों आम और खास में चर्चा का विषय बनी हुई है। आलोट थाने में पुलिसकर्मियों पर धमकाने और वसूली के गंभीर आरोपों को लेकर धरने पर बैठे भाजपाइयों के खिलाफ जिला भाजपा संगठन की ओर से नोटिस जारी होना और रतलाम नगर सरकार के नए-नवेलों की अनुशासनहीनता पर चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विधानसभा चुनाव से पूर्व नोटिस से नाराज आलोट क्षेत्र के 100 भाजपाइयों द्वारा पार्टी छोड़ना एक बड़ा तमाचा है। खास और आम का अब यह सवाल है कि औद्योगिक थाने पर ताले लगाकर शासकीय कार्य की बाधा पहुंचाना हो या फिर निगमकर्मी से मारपीट कर आरोपी बन चुके नए-नवेले भाजपाइयों से संगठन ने अब तक जवाब क्यों नहीं मांगा? अंदर की बात यह है कि जिला संगठन अपनी दोहरी नीति से पार्टी को नफा पहुंचाएगा या नुकसान यह विधानसभा चुनाव के परिणाम बताएंगे।
और शिकायत के बाद भी ठेकेदारों को भुगतान
शहरवासियों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने वाली नगर सरकार के माननीय ठेकेदारों पर मेहरबान है। मुद्दा तब गरमाया जब आम जनता की नहीं बल्कि भाजपा पार्षदों की गंभीर शिकायत के बावजूद सुनवाई बगैर ठेकेदारों को भुगतान हो गया। रुपए वितरण करने वाली समिति की बैठक में माहौल भी काफी गरमाया, ये अंदर की बात है कि नए-नवेले पार्षद राजनीति बिसात नहीं समझ पा रहे। जिस फूलछाप पार्टी के बैनर तले नवेले पार्षद दम भर ठेकेदारों के कार्यों पर असंतोष जाहिर कर रहे हैं वहीं ठेकेदार उनके आकाओं को खुश रखने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। इसी के चलते पार्षदों की शिकायत के बावजूद बेखौफ बिल लगते हैं और फाइल पर आपत्ति दर्शाए बगैर भुगतान कर दिया जाता है। निगम अधिकारी भी जानते हैं कि नए-नवेले पार्षद नाराज होकर जाएंगे तो वहीं जिनके इशारे पर भुगतान हुआ है।