रतलाम, वन्देमातरम् न्यूज।
चैत्र नवरात्री की महाष्टमी पर्व पर शहर सहित अंचल क्षेत्रों में तैयारियां की जा रही है। मां की आराधना के इस खास पर्व पर कई तरह के आयोजन होंगे। शहर में कल शुक्रवार सप्तमी की संध्या पर चुनरी यात्रा का आयोजन किया गया है। शहर के त्रिवेणी स्थित मुक्तिधाम से पहली बार चुनरी यात्रा निकाली जाएगी। इस चुनरी की लंबाई 101 फिट होगी जो कि मुक्तिधाम में स्थित मां अम्बे के मंदिर से राजापुरा माताजी स्थित माता गढ़खंखाई के दरबार में अष्टमी को शनिवार सुबह पहुंचेगी। इसका आयोजन शमशान की रानी नवयुवक मंडल द्वारा किया जाएगा। एक और चुनरी यात्रा का आयोजन महलवाड़ा की पद्मावती माता मंदिर से गढ़खंखाई माता जी के लिए निकलेगी। आयोजक जनक नागल ने बताया की चुनरी यात्रा का 12वां और पैदल यात्रा का यह 22 वां वर्ष है। अभी तक यह यात्रा रतलाम से श्री गढखंखई माताजी तक पैदल जाती थी परंतु कोरोना काल में दो वर्ष पैदल यात्रा नहीं निकाल पाने के कारण यात्रा में बदलाव करते हुए भक्तों की सुविधा को देखते हुए इस बार श्री पद्मावती माता मंदिर राजमहल (महलवाड़ा) से पेलेस रोड श्री गणपति मंदिर तक चुनरी को पैदल ले जाएंगे, वंहा से रथ मे रख कर दो पहिया वाहनों के साथ चुनरी यात्रा आगे जाएगी। चुनरी रथ से वैदिक ज्ञान विज्ञान पीठ के ज्योतिषाचार्य श्री संजय शिव शंकर जी दुबे एवं साथियों द्धारा भक्तों को त्रिपुंड शिव तिलक लगाया जाकर रास्ते मे 5111 अभिमंत्रित रुद्धाक्ष को निःशुल्क वितरण कीया जाएगा ।
वहीं शुक्रवार शाम शहर के शीतलामाता मंदिर, लक्कड़पीठा से भवानी ग्रुप द्वारा पदयात्रा का आयोजन भी किया जाएगा। पदयात्रा का समापन भी राजापुरा माताजी स्थित माता गढ़खंखाई पर होगा।
करीब 1 लाख भक्त पहुंचते हैं
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर राजापुरा पंचायत में माही नदी के किनारे माता गढ़खंखाई का प्राचीन मंदिर स्थापित है। यह 500 साल पुराना बताया जाता है। हर वर्ष चैत्र नवरात्रि पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। आदिवासी समाज अपनी कुल देवी के रूप में माता की पूजा अर्चना करता है। मान्यता है कि माता हर मनोकामना को पूर्ण करती है व साक्षात स्वयं शेर पर सवार होकर मंदिर प्रांगण में भी आती है। शहर सहित अन्य दूर दराज क्षेत्रों से भक्त सप्तमी को रात्रि से जाने लगते हैं। जिनकी खान पान फलाहार आदि के कई भंडारे कठिन रास्तो पर आयोजित किये जाते है।
माताजी के नाम को लेकर भी एक कथा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां राजा रतनसिंह द्वारा रतलाम गढ़ का निर्माण कराया जा रहा था, परंतु राजा अभिमानी था और उसने माता के स्थान पर पहुंचने के बावजूद उन्हें प्रणाम नहीं किया। इस पर माता ने क्रोध में खंखार किया, तो उसके वेग से ही निर्माणाधीन गढ़ बिखर गया। तभी से यह मंदिर गढ़खंखाई के नाम से पहचाना जाता है। पिछले दो साल से चैत्र की नवरात्रि पर कोरोना काल के चलते यहां मेला नहीं लग पाया।