असीम राज पांडेय, केके शर्मा, जयदीप गुर्जर
रतलाम। इस साल के आखरी में विधानसभा चुनाव होना है। हर कोई अपनी दावेदारी मान कर अंदरूनी रूप से चुनावी बिछात बिछाने में लगा है। खास मुकाबला इस बार जिले के ग्रामीण क्षेत्र में देखने को मिलेगा। क्योकि दोनों मुख्य पार्टी से कई दावेदार सामने आ सकते है। हालांकि जो पार्टी तय करेगी वह अपने आप मे फुला ना समायेगा। ऐसे में पिछले चुनाव में हाथ का पंजा पार्टी से टिकिट लेकर ऐनवक्त पर टिकिट कटने वाले एक “अधिकारी” इस बार भी चुनावी सपने देख रहे है और वह अपनी तैयारियों में लग गए है। हालांकि वह वर्तमान में पड़ोसी जिले की एक तहसील में पदस्थ है। लेकिन सप्ताह के आखरी दो दिन वह जिले के ग्रामीण अंचल में बिता रहे है और लोगों की समस्या सुन संबंधित मिलने जुलने वाले अपने वलन वाले अधिकारियों से समस्याएं भी हल करवा रहे है। चूंकि यह अधिकारी पूर्व में जिले में काफी समय तक रह चुके है और हर एक गांव में इनके मिलने जुलने वाले है। यहां तक जिले में पदस्थी के दौरान फूल छाप पार्टी के पूर्व माननीय भी इनके खिलाफ धरने पर बैठ चुके थे जबकि सरकार भी इन्हीं माननीय की थी। खैर जो भी हो यह तो वक्त बताएगा कि टिकिट पाने में किसे सफलता हासिल होगी।
क्या आप कांग्रेस माइंडडेट हो
शहर में लगातार चोरी की घटनाएं हो रही है। रात्रि गश्त भी कहीं नजर नहीं आ रही है। खाकी वर्दी वाले रात में समय से पहले दुकानें बंद करा रहे है। ऐसे में विशेष वर्ग के क्षेत्र में भी दुकानें बंद कराने पर कुछ लोगों ने तीन स्टार वाले साहब के सामने आपत्ति जताई और कह दिया कि आप कांग्रेस माइंडडेट हो, तब साहब बोले में ना तो कांग्रेस माइंडडेट हूं और ना ही भाजपा का हूं। में तो पुलिस माइंडडेट हूं। हालांकि इस दौरान साहब एक याचक की भूमिका में रहे और सामने वाले दमखम से बोलने में पीछे नहीं थे। देखने वाले भी साहब को देखते रहे और मन ही मन पुलिसियागिरी की हालत को देख सोचते रहे कि जहां दम दिखाना चाहिए वहां खाकी वर्दी शांत रहकर एक याचक की भूमिका में है।
नाकाम पुलिस की “महारत” बन रही चौराहों की चर्चा
शहर के बीचोबीच आधा दर्जन फ्लैट के ताले चटकाने वाले “माहिरों” ने पुलिस गश्त के दावों को फिर चुनौती दे डाली। शहर के बीचोबीच स्थित शास्त्रीनगर में हुई वारदात के बाद रिहायशी क्षेत्र के स्टेशन रोड पर सिर्फ दो एफआईआर दर्ज हुई। चर्चा है कि 267/23 अपराध क्रमांक की एफआईआर में दो फरियादी को समाहित कर दिया गया। ऐसा क्यों हुआ ? इसका जवाब जिम्मेदारों के पास भले ही नहीं हो। लेकिन रतलाम की आमजनता चौराहों पर जरूर बोल रही की पुलिस चोरी रोकने में नहीं बल्कि बढ़ते अपराध के ग्राफ को कम दिखाने की जादूगरी में जरूर “महारत” रखती है।