रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
पीरियड्स… एक ऐसा शब्द, जिसपर पुरुष क्या महिलाएं भी बात करने से हिचकिचाती हैं। यह शब्द सुनते ही सभी असहज होने लगते हैं।यहां तक कि अपनी शारीरिक प्रक्रिया के बारे में खुद महिलाएं भी खुलकर बात नहीं करती हैं। पीरियड्स के बारे में कई बातें आज के इतने विकसित युग में भी भारत के कई जगहों पर चर्चित हैं। महिलाओं को पीरियड्स होने पर ऐसी हिदायतें दी जाती हैं जिसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं होता परन्तु महिलाओं को इनका सामना करना पड़ता हैं। हालांकि ये सभी रूढ़िवादी भ्रमों के अलावा कुछ भी नहीं है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्टूडेंट फ़ॉर सेवा यानी SFS द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिसे “ऋतुमती अभियान” नाम दिया गया है। ऋतुमती के अर्थ की बात करे तो वे महिलाएं जिनको हर माह पीरियड्स से होकर गुजरना पड़ता है। जिस तरह महिलाओं के लिए आयुष्मती, सौभाग्यवती आदि उपनाम प्रयोग लाये जाते है ठीक उसी तरह ऋतुमती भी है।
गुरुवार को शहर के शासकीय महिला आईटीआई कॉलेज में पीरियड्स को लेकर जागरूकता के लिये स्पेशल क्लास रखी गई। जिसमें डॉ. अदिति भावसार ने उपस्थित छात्राओं से खुलकर चर्चा की और पीरियड्स से जुड़ी जानकारियां साझा की। इस दौरान कई छात्राओं की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया।
SFS द्वारा आयोजित कार्यक्रम में छात्राओं ने उत्साह के साथ भाग लिया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में महिला रोग व ENT विशेषज्ञ डॉ. अदिति भावसार रही। कार्यक्रम में मुख्य रूप से शासकीय महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) के प्राचार्य एके श्रीवास्तव व रक्षित मेहता, नगर SFS प्रमुख चेतन पंवार, भारत कुमावत, मोहित पंवार आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन माही शर्मा ने किया।
स्वास्थ के लिए घातक है “कपड़ा!”
डॉ. अदिति भावसार ने वन टू वन चर्चा में छात्राओं को बताया कि आज हमारे देश में अधिकतर महिलाएं अपने माहवारी के वक्त कपड़े का इस्तेमाल करती है। केवल मात्र 48 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो सेनेटरी नैपकिन के प्रयोग को जानती है। भारत में आज भी एक बहुत बड़े स्तर पर घरेलू परिवेश में कपड़े का प्रयोग हो रहा है। ऐसे में कपड़े के सही उपयोग ना करने व पीरियड्स म् स्वच्छता संबंधित चूक होने से महिलाओं को गम्भीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। पीरियड्स के दौरान कपड़ा उपयोग में लाने से यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिये घातक बन रहा है। इसके अलावा संकुचित घरेलू परिवेश के कारण भी महिलाओं को अपने मासिक धर्म के समय अनेक समस्याएं झेलनी पड़ती है।
दिल्ली से शुरू हुआ ऋतुमती अभियान
एबीवीपी रतलाम के जिला संयोजक शुभम कुमावत ने वंदेमातरम् न्यूज से चर्चा में बताया की पीरियड्स की समस्याओं को चोट करते हुई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ऋतुमति अभियान शुरू किया। जिसके माध्यम से मासिक धर्म यानी पीरियड्स विषय पर चर्चा एवं जागरुकता फैलाने का काम विद्यार्थी परिषद कर रही है। पीरियड्स के मुद्दे को हम खुले मंच पर बोलने की रूढ़िवादिता को खत्म करने का प्रयास कर रहे है। सामाजिक निषेध (टेबू) को खत्म करने के उद्देश्य से ग्रामीण, शहरी, झुग्गी आदि परिवेशों में जाकर पीरियड्स के समय स्वच्छता एवं उसके महत्त्व से सम्बन्धित चर्चा स्थापित कर रहे हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा जब पहला मासिक धर्म स्वच्छता जागरुकता अभियान ऋतुमति दिल्ली प्रदेश में प्रारम्भ किया गया तब ये मालूम हुआ कि छात्राओं व युवतियों को स्कूल तथा आंगनवाड़ी में जो सेनेटरी नेपकिन मिलता है उसका उपयोग तो वह करती है लेकिन मात्र तब जब वह घर के बाहर जा रही हो, घर पर तो वह कपड़े का ही प्रयोग करती है। ऐसे में निश्चित है कि सेनेटरी नेपकिन के प्रति उनकी जागरुकता व जानकारी तो है, या यूं कहे एक्सेसिविलिटि है पर अफौर्डेविलिटी नहीं है।
इस समस्या को समझते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अफोर्डेबल कीमत पर सेनेटरी पेड उपलब्ध कराने की मुहिम भी चला रही है। विभाग संयोजक कृष्णा डिंडोर का कहना है की विद्यार्थी परिषद पूरे विभाग में कॉलेज व यूनिवर्सिटी लेवल पर सेनेटरी पेड डोनेशन ड्राइव चला कर, झुग्गी बस्तियों में पेड डिस्ट्रिब्यूशन का कार्य भी कर रहा है। ताकि पीरियड्स के समय कोई भी महिला बीमारी का शिकार न हो।