रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज। अलकापुरी स्थित सांस्कृतिक सभागृह में आयोजि श्रीमद् भागवत कथा का रसपान वृंदावन से पधारी सुश्री देवप्रिया माही किशोरी के मुखारविंद से हो रहा है। श्राद्ध पक्ष में गीताजी का श्रवण करवाने के साथ सुश्री देवप्रिया माही किशोरी मानव जीवन में भागवत गीता की उपयोगिता को भी बारिकी से समझा रही हैं।
सुश्री देवप्रिया माही किशोरी ने बताया कि भागवत कथा सुनते ही ज्ञान और वैराग्य जाग जाए। अतः जो कथा ज्ञान और वैराग्य जगाए वह पाप में कैसे ढकेल सकती है भागवत कथा पौराणिक होती है। नारद जी ने भक्ति सूत्र की व्याख्या करते हुए भी भक्ति को प्रेमारूपा बताया है। वह अमृत रूपणी है जिसे पाकर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है फिर वह कुछ और न चाहता है, न राग, न रंग सिर्फ ठाकुर जी की भक्ति में उन्मद रहता है इस लिए सभी जीव को सदा राधा रानी की भक्ति में डूबे रहना चाहिए।
राजा परीक्षित को भागवत कथा के श्रवण से मुक्ति मिली
सुश्री देवप्रिया माही किशोरी ने कहा कि हर प्राणी के लिए श्रीमद्भागवत कथासर्वश्रेष्ठ है। समीक ऋषि से श्रापित होने के बाद राजा परीक्षित को भागवत कथा के श्रवण से मुक्ति मिली थी। भागवत कथा सुनने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। कथावाचिका ने शुकदेव परीक्षित का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार राजा परीक्षित वनों से काफी दूर चले गये। पास में स्थित समीक ऋषि के आश्रम में जाकर ऋषिवर से कहा मुझे पानी पिला दो। लेकिन उस समय समीक ऋषि समाधि में थे। इसलिए परीक्षित को पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि समीक ऋषि ने उनका अपमान किया है। इसलिए उन पर भी अत्याचार करना चाहिए। उसने पास से एक मृत सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। उस समय समेक ऋषि का ध्यान करते समय उन्हें ज्ञात ही नहीं हुआ कि उनके साथ राजा परीक्षित ने क्या किया है। उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब यह बात पता चली तो राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान जीवित रहेगा। इस प्रकार विचार करके ऋषि कुमार ने कमंडल से अपनी अंजुल में जल लेकर और मंत्रों से अभिमंत्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दिया कि उन्हें तक्षक सर्प दसेगा। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं। इधर राजा परीक्षित को भागवत कथा के श्रवण से उक्त श्राप से मुक्ति मिली थी।