रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
आत्ममुग्ध एवं आत्म प्रशंसा के भाव से हम सराबोर हैं । देश को दुनिया का गुरु मानने का मोह अभी छूटा नहीं है। आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद भी हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं । हमारे मुगालते दिन-ब-दिन बढ़ते गए और हक़ीक़त से हम उतने ही दूर होते गए।क्या इस वक्त देश को एक बार ठहर कर अपनी अब तक की असफलताओं पर चिंतन करने की आवश्यकता नहीं हैं?
देश में किसी भी क्षेत्र की असफलताओं पर नागरिकों का मंतव्य लिया जाए तो सौ में से अस्सी फ़ीसद लोग यही कहते पाए जाएंगे कि राजनीति की दखलअंदाजी अगर न हो तो हर क्षेत्र का बेहतर विकास हो सकता है। यानी राजनीति की दखलंदाजी से हर क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि ’वोट की राजनीति’ से हर क्षेत्र प्रभावित हो रहा है । तो क्या सबसे पहले राजनीति पर ही पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं महसूस की जाती ? हम राज करने के लिए किसी भी नीति को अपने अनुसार मोड़ने में माहिर हो गए हैं। अपने हित, अपनी सत्ता, अपना शासन, अपना वर्चस्व, अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए हमने नीतियों को तोड़ा- मरोड़ा। परिणाम यह हुआ कि नेतृत्व उतना ही आभा विहीन होता गया। आज देश में कोई चेहरा नहीं है, जिसका अनुसरण नई पीढ़ी कर पाए। तो क्या झूठी वाहवाही के पीछे छुपे ऐसे आभाहीन चेहरों को एक बार खुद आईना देखने की ज़रूरत महसूस नहीं होती? यदि नहीं होती तो यह देश का दुर्भाग्य है , और यदि होती है तो यही देश की आशा है । इस वक्त हमें ’राजनीति’ को ’नीतीराज’ में बदलने की ज़रूरत है ।अभी तक हम राज करने के लिए नीतियों को बदलते रहे मगर अब हमें नीति का अनुसरण करते हुए राज करने की पद्धति में बदलाव लाने की ज़रूरत है। यह बदलाव केवल बातों से , भाषणों से, आयोजनों से, अदाकारी से, शोशेबाज़ी से और आंकड़ों से नहीं आने वाला। यह बदलाव चारित्रिक विकास से आएगा। इस वक्त ऐसा ही ऐसा ही चारित्रिक विकास चाहिए जो आने वाले वक्तों को मज़बूत कर सके ।
बीते दो साल हमारे लिए कठिन परीक्षा के रहे। संक्रमण ने देश की आर्थिक, सामाजिक ,राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया। हम कई वर्षों पीछे चले गए । हमारे प्रयासों की गति थम सी गई । कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जहां बीते 2 वर्षों की भरपाई करने का कोई रास्ता दिखाई दे रहा हो। ऐसे समय में हमें आने वाले वर्षों की भयावहता को महसूस करने की ज़रूरत है । सोचिए, जब देश अपनी आजादी की सौवीं वर्षगांठ मना रहा होगा, तब इस देश को अपने किन क्षेत्रों पर गर्व होगा? यदि अगले 25 वर्षों में हम कुछ क्षेत्रों को ही मज़बूत कर सके तो आज़ादी की शताब्दी ,उस क्षेत्र पर गर्व के साथ मनाई जा सकेगी।
इस समय हमें ’संकल्पों’ से मुक्त होकर ’विकल्पों’ पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है। किसी भी क्षेत्र में हमें आज बेहतर बेहतर विकल्प दिखाई नहीं दे रहे। शिक्षा के क्षेत्र को देखें तो वहां बीते दो वर्षों ने हमारी एक पूरी पीढ़ी को खत्म कर दिया है । इन 2 वर्षों में शिक्षा का जितना नुकसान हुआ उसने आने वाले 10 वर्षों तक एक नई पीढ़ी को बेकार करने की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। इस परिस्थिति से हमें निपटना बहुत ज़रूरी है वरना शिक्षा के क्षेत्र में जो गड्ढा हुआ है, उसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। शिक्षा के क्षेत्र में हमें नई नीतियों की प्रशंसा से ऊपर उठकर नए विकल्पों की तरफ ध्यान देना बहुत ज़रूरी है । वर्तमान परिस्थितियों ने हमें समझा दिया है कि आज की शिक्षा पद्धति मुसीबत के वक्त कारगर नहीं है। ऐसे क्या विकल्प अपनाया जाएं जिससे भविष्य में यदि कभी ऐसी गंभीर स्थितियां पैदा हों तो शिक्षा का क्षेत्र अप्रभावित रहे? इस बारे में शिक्षाविदों को सोचना चाहिए ।
इस महामारी ने स्वास्थ्य के क्षेत्र की पोल खोल दी ।अब तक अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं पर हम गर्व करते रहे। हमारे देश ने सड़कों पर मरते लोगों को देखा, इलाज के लिए अस्पताल उपलब्ध नहीं हो पाए, सांसो का संकट जीवन पर भारी पड़ा। लोग ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर सड़कों पर भटकते रहे । नदियों के किनारे लाशों के ढेर पड़े मिले। श्मशान और कब्रिस्तान अंतिम संस्कार के लिए छोटे पड़ गए। इन दृश्यों के बाद देश कितना रोया होगा इसकी कल्पना हम नहीं कर सकते। जेब में लाखों रुपए लेकर घूमते लोगों को अस्पताल में जगह नहीं मिली। ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिला। एक छोटे से वायरस में हमें अपनी औकात दिखा दी ।हम कहां हैं यह बता दिया। हमारा सारा दंभ चूर-चूर कर दिया। तो क्या ऐसे दृश्यों को देखने के बाद हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर और मज़बूत विकल्पों की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं महसूस होती है? सिर्फ अस्पताल बनवा देने से, सिर्फ वहां सुविधाओं को बढ़ा देने से कोई हल नहीं होने वाला। अब जब लोग मर गए हैं तब देशभर में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं। जब लोगों को अस्पताल में जगह नहीं मिली तब नया अस्पताल बनाने की योजनाएं बन रही है। यह सब समय रहते कर लिया जाता तो इतनी बुरी स्थिति नहीं होती। ऐसे में हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ बेहतर विकल्पों को गढ़ने की आवश्यकता है। यदि कुछ बेहतर विकल्प स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम खोज पाए और उन पर ईमानदारी से काम हो गया तो आने वाले समय में हम स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतर हो सकते हैं।
सांस्कृतिक रूप से हम इस वक्त काफी पीछे हो चुके हैं। सोशल डिस्टेंसिंग की आवश्यकता ने लोगों के बीच में दूरियां बढ़ा दी है। हमारे आपसी रिश्ते औपचारिक बन चुके हैं। आत्मीयता समाज से विलुप्त हो रही है। सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लोगों को जोड़ने का काम किया करती थी वे भी स्वार्थ की भेंट चढ़ कर लोगों को तोड़ रही हैं। खेमेबाजी, गुट, समूह और न जाने किस -किस तरह से इन संबंधों को ख़राब किया जा रहा है। ऐसे में सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी कुछ ऐसे विकल्पों पर गौर किए जाने की आवश्यकता है, जिनसे हमारे रिश्तो की पवित्रता बनी रहे, आत्मीय संबंध बने रहे और हमारा सांस्कृतिक वैभव कायम रह सके।