दो दिवसीय स्वामी विवेकानंद व्याख्यानमाला का शुभारंभ, नारी के भारतीय इतिहास को बताया

रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज़।
स्वामी विवेकानंद व्याख्यानमाला समिति द्वारा आयोजित दो दिवसिय व्याख्यानमाला में आज महिला सशक्तिकरण पर भारतीय चिंतन विषय के मुख्य वक्ता डॉक्टर हर्षवर्धन रहे एवं मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉक्टर लीला जोशी रहे कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा भारत माता की पूजन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुई तत्पश्चात मुख्य अतिथि डा. लीला जोशी जी ने कहां कि व्याख्यानमाला श्रंखला में नारी सशक्तिकरण विषय को प्रथम स्थान दिया जाना नारी का सम्मान है। आरएसएस के प्रचार प्रमुख पंकज भाटी ने जानकारी देते हुए बताया की मुख्य वक्ता डॉक्टर हर्षवर्धन ने अपने उद्बोधन में कहा कि नारी सशक्तिकरण नाम भी भारत के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि नारी प्रारंभ से ही भारत में पूजनीय रही है, देवों में भी महादेव ने अर्धनारीश्वर रूप में नारी को अपना आधा अंग माना है। पश्चिमी इतिहासकारों द्वारा लिखी गई पुस्तकों के आधार पर उन्होंने बताया कि युरोप में 18 वीं शताब्दी में महिलाओं को मारकर समुद्र में फेंक दिया जाता था, 90 लाख महिलाओं को डायन मानकर वहाँ जिंदा जला दिया गया उसी समय में हमारे देश में सावित्रीबाई ने 21 स्कूलों की स्थापना कर दी थी और रानी लक्ष्मीबाई ने अपने कंधे पर बालक दामोदर को लेकर युद्ध लड़े। डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 10 उपाध्याय से एक आचार्य, सौ आचार्य से एक पिता सहस्त्र पिता से एक माता श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि नारी ही नारी की दुश्मन है ससुराल में भी महिला की सास और ननद से ही नहीं बनती ,वही हर महिला चाहती है कि मुझे बेटा ही प्राप्त हो। बेटियों को भी बेटों का स्थान दिया जाता है जो पूर्णतया गलत है। बेटी को बेटी ही मानकर क्यों नहीं पाला जाता। बेटा ओर बेटी में यह भेद हमारे द्वारा ही डाला गया। पहले के समय में जब घर में नई बहू आती थी तो पड़ोसियों रिश्तेदारों को बुलाकर कहा जाता था कि हमारे घर नई बहू आई है, उसका दर्शन करने पधारना इसका मतलब यह था कि पहले पर्दा प्रथा भी नहीं थी। पन्नाधाय, जीजाबाई जैसे अनेकों उदाहरण है जिन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि माना है। आगे स्वयं का उदाहरण देते हुए कहा उनकी माता की इच्छा से उन्होंने देशसेवा के लिए घर छोड़ दिया एवं ऐसे अनेकों लोग हैं जिन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा के चलते अपना घर छोड़ा क्योंकि उनके परिवारों में ऐसी शिक्षा दी कि मां से भी बड़ा दर्जा मातृभूमि का है। आगे उन्होंने बताया कि नारियों का राजनैतिक हस्तक्षेप भी रहा है वही जितने भी युद्ध लड़े गए नारियों की अस्मिता को बचाने के लिए लड़े गए एवं अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जिनमें भारतीय राजाओं ने युद्ध में जीत जाने के बाद उनकी महिलाओं को ससम्मान भेजा यह सिर्फ और सिर्फ हिंदू धर्म में ही संभव है। भारतीय इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने विकृत किया।

उपस्थित श्रोतागण

अतिथियों का परिचय समिति के सचिव डा. हितेश पाठक ने करवाया। सरस्वती संगीत विद्यालय के छात्रों ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। संचालन वैदेही कोठारी ने किया आभार समिति अध्यक्ष विम्पी छाबड़ा ने माना। कार्यक्रम के अंत में वंदे मातरम गान रुचि चितले द्वारा किया गया। बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल थीं।

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