रतलाम, वन्देमातरम् न्यूज।
शहर की सीमा से सटे जनजाति समाज के गावों की जमीन को औद्योगिक निवेश में लिए जाने का अब जनजाति खुलकर विरोध करने लगी है। जल, जंगल और जमीन को अपना सब कुछ मानने वाले आदिवासी ने इसके लिए महापंचायत कर सरकार से लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है। आदिवासी संगठन जयस इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
प्रदेश सरकार ने रतलाम शहर से लगी 18 हजार हेक्टयर भूमि को औद्योगिक निवेश के लिए चयनित किया। इसमें रामपुरिया, सागोद, सहित अन्य 5 गावों की जमीन अधिग्रहित की जाएगी। ये सभी गाँव जनजाति समाज बाहुल्य है। जमीन अधिग्रहित को लेकर जनजाति समाज के लोग नाखुश है। आदिवासी संगठन जयस ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ठानी। जयस ने आंदोलन की तैयारी को लेकर आज आदिवासी महापंचायत बुलाई थी। इस महापंचायत में इन 5 गावों सहित अन्य गावों के आदिवासी बड़ी संख्या में शामिल हुए।
आदिवासियों की इस महापंचायत को अन्य संगठनों का समर्थन भी मिला। महापंचायत में भीम आर्मी सेना, पिछड़ा वर्ग महासभा, भारतीय ट्राइबल पार्टी जैसे संगठन के प्रदेश पदाधिकारी सहित दिल्ली से आए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया। सभी ने औद्योगिक निवेश के लिए आदिवासियों की जमीन को शामिल करने का विरोध किया। ग्राम रामपुरिया में आयोजित इस महापंचायत में आदिवासी संवैधानिक अधिकारों, पैसा कानून तथा जल जंगल के संवैधानिक अधिकारों, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आदिवासी अस्मिता, कला, आत्म सम्मान, संस्कृति, इतिहास ज्ञान, स्वावलंबन अस्तित्व और प्रकृति और पर्यावरण जैसे अनेक विषयों को लेकर जयस महापंचायत में विचार विमर्श किया जाएगा और आदिवासियों की गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए चिंतन-मनन किया। इस महापंचायत में आदिवासी एकता परिषद, अखिल भारतीय भील समाज, आदिवासी छात्र संगठन, जय आदिवासीय युवा शक्ति (जयस)वीर एकलव्य आदिवासी सामाजिक सेवा संस्था जैसे आदिवासियों के संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल थे।
महापंचायत में रतलाम जिला प्रशासन द्वारा जयस को आदिवासी महापंचायत आयोजित करने के लिए अनुमति नही दिए जाने को लेकर कड़ा आक्रोश भी व्यक्त किया। जिला प्रशासन के इस कदम पर नोटिस देकर मामले को कोर्ट में ले जाने का भी निर्णय लिया है।
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