रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज।
शहर सहित अंचलों में युवाओं को चाकू घोंप मौत के घाट उतारना हो या फिर सरेराह चाकू से हमला कर राहगीरों से लूट की वारदात। सभी मामलों से अचानक खुली पुलिस की नींद ने आमजन को चर्चा का मुद्दा देकर सवाल का दौर शुरू कर दिया है। वंदेमातरम् न्यूज की पड़ताल में आमजन का प्रमुख सवाल कुछ ऐसा है कि आखिर पुलिस कहाँ थी ? बंद चैम्बरों में बैठकर सुस्ताने वाली पुलिस फरियादी के सामने न्यायधीश की भूमिका के बजाए “स्ट्रीट स्ट्रिकनेस” (सड़कों पर सख्ती) क्यों नहीं की ? ऐसा होता तो न बेख़ौफ़ वारदात होती और न ही बदमाशों के हौंसले बुलंद।
जिले में पुलिस काफी समय से अवैध हथियार सहित बदमाशों की पड़ताल जैसे अभियान को फाइल में दफ़न कर चुकी है। हालात ऐसे बने की नामली थाना अंतर्गत ग्राम बड़ौदा के घर में किसान ने कट्टे से गोली मार ली। सबसे बड़ा सवाल की एक किसान के पास कट्टा और कारतूस कैसे पहुंचा ? यानी जिले में अवैध हथियार के सौदागर बेख़ौफ अपना काम कर रहे हैं। शिवगढ़ हो या फिर रतलाम का दीनदयाल नगर थाना क्षेत्र यहां पर आरोपियों ने जेब में से चने और चोकलेट की तरह आसनी से चाकू बाहर निकाले और दो युवाओं को मौत के घाट उतार दिया। शिवगढ़ के जिस छात्रावास परिसर में हत्या हुई अगर ग्रामीण की मानें तो वह सूरज अस्त होते ही असामाजिक तत्वों का केंद्र बन जाता है। सवाल यह कि स्थानीय पुलिस ने रोक-टोक सहित बदमाशों की सर्चिंग से आंखें मूंदे बैठी रही ? इतना ही नहीं इन्हीं सब के बीच नामली ओवरब्रिज पर दो बाइक पर छह बदमाश आते हैं और सरेराह दो युवकों को रोककर चाकू से वार कर लूट को अंजाम दे जाते हैं। यहां पर भी पुलिस बंद कमरे में बैठ सुस्ताती रही और बदमाशों ने कार्यप्रणाली को सवालातों से घेर दिया ? इन तमाम वारदातों के बाद आमजनता ने शुक्रवार को देखा की आखिर बढ़ते अपराधों और बदमाशों में ख़ौफ पैदा करने के लिए एसपी अभिषेक तिवारी को खुद सड़क पर उतरना पड़ा। हालांकि यह “स्ट्रीट स्ट्रिकनेस” अभियान कब तक चलेगा या पुराने अभियान की तरह यह भी फाइल में सिमट कर रह जाएगा ? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में होने वाली आपराधिक गतिविधियों की रफ़्तार से ही मिल पाएगा।