
असीम राज पाण्डेय, रतलाम। साधारण परिषद सम्मेलन से पहले फूलछाप वार्ड माननीयों की रणनीति बैठक में जो कुछ हुआ, उसकी गूंज अभी तक सियासी गलियारों में सुनाई दे रही है। पार्टी जिला मुखिया और नगर सरकार के बीच गरमा-गरम बहस के बाद बड़े मियां और छोटे मियां की जोड़ी अचानक चर्चा के केंद्र में आ गई। मामला तूल तब पकड़ गया जब बैठक के दो दिन बाद सोशल मीडिया पर दोनों की ‘गले में हाथ डाले’ वाली तस्वीरें वायरल हो गईं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि फूलछाप पार्टी में अब दो नहीं, बल्कि तीन गुट बन चुके हैं, जिसमें तीसरा गुट बड़े मियां-छोटे मियां की नई जोड़ी का है। वार्ड माननीयों की बैठक में भले ही इस्तीफे की धमकी और प्रदेश मुखिया से शिकायत की गूंज सुनाई दी हो, लेकिन ये अंदर की बात है…कि दोनों के बीच अब जबरदस्त तालमेल है। असली खेल आगामी दिनों में जिले की बॉडी में भी देखने को मिलेगा। बड़े मियां और छोटे मियां की जोड़ी अपने करीबियों को कितना फायदा पहुंचाएगी, यह आने वाला समय बताएगा। चर्चा है कि फूलछाप पार्टी के पारंपरिक गुटों को झटका देने के लिए बड़े मियां-छोटे मियां की जोड़ी अब एक नई शक्ति बनकर उभर रही है।
खाकी के साहब को मलाईदार पोस्टिंग का मोह
खाकी के बड़े साहब को जैसे ही ट्रांसफर की भनक लगी, उन्होंने तुरंत ‘फील्डिंग’ शुरू कर दी। राजधानी से लेकर बाबा महाकाल की नगरी तक साहब के दौरों का सिलसिला तेज हो गया है। मकसद साफ है दो वर्ष की शेष सेवा में ऐसी पोस्टिंग मिले, जहां बल्ला घुमाया जाए। वैसे तो साहब कलमकारों से कन्नी काटते थे, लेकिन इन दिनों समीप के जिलों में खूब खबर छपवाने की दिली इच्छा जाग उठी है। वजह सिर्फ विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक अपनी ‘प्रतिष्ठा’ का संदेश पहुंचाना। साहब समाज सुधारक भी बन गए हैं! वर्दी पहनकर अपराधियों को सुधरने का मौका देने का श्रेय भी खुद ही लेने लगे हैं। ये अंदर की बात है… कि उनके ‘कार्यकाल’ से न सिर्फ महकमा, बल्कि सफेद कुर्ताधारी नेता भी अच्छे से वाकिफ हैं। साहब को अगर लगता है कि अखबारों की सुर्खियां ही पोस्टिंग तय कर देंगी, तो यह उनका भोलापन ही कहा जाएगा।
ईमानदारी का मुखौटा और भ्रष्टाचार पर कृपा
शहर को बेहतर सुविधाएं देने वाले साहब भले ही अपनी ‘ईमानदारी’ का बखान करें, लेकिन परिषद की बैठक में उनकी ‘स्वच्छ छवि’ पर पानी फिर गया। साहब इतने भोले हैं कि भ्रष्टाचार की शिकायतें सामने आने पर भी मासूमियत से कह देते हैं “मामला संज्ञान में नहीं है, अभी दिखवाता हूं।” परिषद की सभापति ने भी नाराजगी जताते हुए ताकीद कर दी कि अगली बार अधूरी जानकारी लेकर न आएं। मजे की बात तो ये है कि साहब ने एक ऐसे अधिकारी को संरक्षण दे रखा है, जो हाल ही में भ्रष्टाचार के मामले में सुर्खियां बटोर चुका है। शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी उठाने वाले अधिकारी के खिलाफ समिति प्रमुख पहले ही सवाल उठा चुके हैं, लेकिन साहब का दिल बड़ा है उन्होंने अपनी कृपा बनाए रखी। त्रिवेणी मेले में डेढ़ लाख के गबन की जांच रिपोर्ट आने के बावजूद दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय साहब ने उन्हें बचाने का हरसंभव प्रयास किया। सड़कों की नापजोख करने वाले कर्मचारी के खिलाफ लिखित शिकायतें सबूतों के साथ पेश की जा चुकी हैं, लेकिन कार्रवाई का नामोनिशान नहीं। ये अंदर की बात है… कि जनता साहब की मासूमियत पर यकीन करे न करे, लेकिन उनके अधीनस्थ किसके इशारों पर जादूगरी कर रहे हैं, यह सबको अच्छे से पता है।