असीम राज पांडेय, रतलाम। रतलाम का एक थाना इन दिनों कुत्तों के बच्चों को तलाशने में जुटा है। दरअसल वाक्या कुछ इस प्रकार है कि पटरी पार क्षेत्र स्थित महिला थाना परिसर में कुत्तों के बच्चों ने जन्म लिया। थाने की मुखिया सहित एक तारे के साहब इनकी आवाज और गंदगी से इतने परेशान हुए है कि उन्होंने सरकारी वाहन में नवजात बच्चों को भरकर अन्यंत्र छोड़ आए। जीव दया प्रेमियों को जब इसकी भनक लगी तो मीडिया के दफ्तरों में मोबाइल घनघनाए। मामला जब कप्तान और थाने के वरिष्ठ अधिकारी तक पहुंचा तो उन्होंने इस असंवेदन शीलता पर कार्रवाई की चेतावनी दे डाली। कप्तान की चेतावनी के बाद असंवेदनशील थाने की मुखिया और एक तारे के साहब कुत्ते के बच्चों को तलाशने में जुटे हैं। असंवेदनशील थाने की मुखिया और एक तारे के साहब ने अधिकारियों तक संदेश पहुंचाया कि हमें वह नहीं मिल रहे हैं। ये अंदर की बात है… कि साहब ने उल्टा चेताया कि जहां पर छोड़कर आए हो वहां से वापस लेकर आओ। अगर तुम नहीं लेकर आए तो कार्रवाई के लिए तैयार रहना। साहब के सख्त तेवर भांपते हुए थाने के अंसवेदनशील मुखिया और एक तारे के साहब इन दिनों नवजात बच्चों को अपनी मां से मिलाने के लिए तलाश में जुटे हुए हैं।

छात्र नेता की थाने में निकली हेकड़ी
देर रात सड़कों पर खड़े रहने वाले आवारा तत्वों पर नकेल कसने के लिए खाकी ने नया रास्ता खोजा है। इसी तारत्मय में पिछले दिनों शहर के स्टेशन रोड थाने की पुलिस सड़कों पर उतरी और आवारा युवकों को वाहन में भरकर थाने लाने लगी। स्टेशन रोड क्षेत्र से आवारा युवकों से भरे वाहन को बीच रास्ते में सत्ताधारी पार्टी के एक छात्र नेता ने रोक अपनी नेतागिरी चमकाने की कोशिश की। नेताजी के आने पर वाहन में बैठा उनका परिचित को भी बल मिला। जैसे-तैसे वाहन थाने में आने के बाद परिचित आवारा वाहन से उतरा, उसने खाकी को रंगदारी दिखाते हुए चुटकी बजाई। इसी बात से नाराज होकर थाने के मुखिया ने आवारा युवक के साथ उसके बचाव में आए छात्र नेता की जमकर लू उतारी। छात्र नेता ने जब देखा कि माजरा बिगड़ गया है तो मुखिया को भाईसाहब-भाईसाहब कहकर संबोधित करने लगा। फिर क्या था खाकी भी खाकी ठहरी। थाने के मुखिया ने छात्र नेता को कक्ष में बुलाकर कहा कि जो बात हम इस आवारा युवक को समझाने के लिए थाने लाए थे, वह बात अब तुम समझाओगे। ये अंदर की बात है… कि भाईसाहब (थाने के मुखिया) के निर्देश पर छात्र नेता ने पहले अगल-बगल देखा फिर परिचित की जमकर लू उतारी और कहा कि आइंदा इस तरह आवारागर्दी के मामले में मुझे फोन मत लगाना।
नेताजी ने छोटी सी धारा में बनाया अलग रिकॉर्ड
जिले के आदिवासी क्षेत्र के एक नेताजी पिछले सप्ताह काफी सुर्खियों में रहे। नेताजी पहले तो जिला मुख्यालय के अस्पताल में डॉक्टर से भिड़ लिए और रही सही कसर उन्होंने जिले के मुखिया को ललकार कर पूरी कर ली। डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर नेताजी ने सोशल मीडिया के माध्यम से हुंकार भरी और प्रदर्शन शुरू होने से पहले ही समर्थकों के साथ जेल पहुंच गए। नेताजी के पट्ठे उन्हें बाहर निकालने के लिए तीन दिन तक छोटे बाबू के कार्यालय में चक्कर काटते रहे। प्रतिबंधात्मक कार्रवाई में तीन दिन तक जेल बीताने का नेताजी ने एक रिकॉर्ड बना लिया। इस दौरान नेताजी ने जेल से अधिकारियों से बाहर निकालने के लिए मनुहार भी लगाई। ये अंदर की बात है… कि नेताजी ने डॉक्टर के विवाद के बाद राजस्थान की सीमा के मंच से जिला मुखिया को कुछ ऐसे शब्द कहे थे जो कि शासन-प्रशासन के कानों में चूभ गए थे। नतीजतन नेताजी की ललकार को खाकी ने कुछ इस तरह से दबाया कि उन्हें समर्थकों के साथ तीन दिन सलाखों में बिताना पड़ गया। नेताजी ने शीतकालीन सत्र में अपनी आवाज उठाने की कोशिश करते हुए सभापति को पत्र लिखा है, लेकिन उन्होंने उक्त पत्र में तीन दिन की जेल यात्रा को लेकर कुछ भी लिखना मुनासिब नहीं समझा।