असीम राज पांडेय/रतलाम, वंदेमातरम् न्यूज। न्याय के मंदिर में स्पीड पोस्ट से भेजी जहर की पुड़िया के मामले में संबंधित थाने ने औपचारिकता निभाई। कानूनी भाषा में प्रकरण को समझा जाए तो न्यायाधीश के नाम पहुंचे लिफाफे में जहर की पुड़िया के मामले में कानून के रखवालों ने पल्ला झाड़ा है। मामले में पुलिस ने लिपिक की ओर से लिफाफा भेजने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। उक्त केस को न्यायालय में प्रस्तुत करने के दौरान कानूनी कार्रवाई में पुलिस को उन्हीं सभी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिस तरह अन्य प्रकरणों में कार्रवाई होती है। थाने के प्रमुख साहब भले ही अपनी सीनियरटी को लेकर आमजनता को कहानी सुनाएं लेकिन मामले में उनके हस्ते हुई एफआईआर में गंभीरता नजर नहीं आई है। हालात ऐसे हैं कि लिपिक की ओर से हुई एफआईआर में अभी तक न्यायाधीश के नाम पहुंचे लिफाफे में उनके बयान दर्ज की साहब हिम्मत नहीं जुटा पाए। ऐसे में कानूनविदों में चर्चा है कि साहब की लचर कार्यप्रणाली से न्यायालय में केस खड़ा भी नहीं होगा।
परिणाम ने खोल दी रतलाम स्वच्छता की पोल
स्वच्छ सर्वेक्षण-2023 के परिणाम ने जिम्मेदारों की नाकामी की पोल खोल कर रख दी। सर्वेक्षण में लाखों रुपए एजेंसियों के खातों में जमा कर जेब भरने वाले जिम्मेदारों ने इस बार भी मुंह की खाई है। पिछले वर्ष की तुलना में रतलाम 16 पायदान लुढक गया। कीमती सामग्री खरीदी के अलावा जागरूकता के लिए प्रचार-प्रसार के बिल भी बेधड़क पास हो गए। आमजनता की गाड़ी कमाई सर्वे में बहाने वाले जिम्मेदार फूलछाप नेताओं ने आंकलन करना मुनासिब नहीं समझा। बताया जाता है कि रतलामवासियों को सड़क, पानी और स्ट्रीट लाइट की सुविधा देने वाले विभाग के मुखिया मई माह में सेवा से मुक्त होने वाले हैं। ये अंदर की बात है कि साहब को रतलाम के लोगों की सुविधा से कोई लेना देना नहीं है। अभी उनका उद्देश्य सिर्फ अंतिम दौर में चौके-छक्के लगाना है। देश के प्रधान द्वारा चलाए जा रहे अभियान में रतलाम की हुई फजीहत में फूलछाप नेता किसे जिम्मेदार ठहराएंगे ? इस सवाल का सभी को बेसब्री से इंतजार है।
इन साहब को मोबाइल से फुर्सत नहीं
जिले में आमजनता कि सुनवाई में अधिकारियों की दिलचस्पी कम रहती है। इसकी बानगी हर मंगलवार होने वाली जनसुनवाई में देखी जा सकती है। ऐसा ही इस सप्ताह को हुई जनसुनवाई में जिले के मुखिया अंचल के दौरे पीआर थे। आमजनता की सुनवाई का जिम्मा मातहतो के पास था। जिले की ग्राम पंचायतों की कमान संभालने वाले मुखिया भी यहां मौजूद रहे। क्योंकि जिला मुखिया के नहीं होने पीआर उनकी ही बड़ी जिम्मेदारी रहती है। ऐसे में पंचायतों के मुखिया केवल अपने मोबाइल में लगे रहे। जनता के आवेदन को देखने की हिम्मत नहीं की। केवल जिला मुखिया के दूसरे नंबर के अधिकारी आवेदन लेकर चर्चा करते रहे। मुखिया के नहीं होने के कारण अन्य विभाग के मातहत भी जनसुनवाई में मात्र अपनी औपचारिकता की रस्म निभाते है।